Log Har Mod Pe Songtext
von Jagjit Singh
Log Har Mod Pe Songtext
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
मैं ना जुगनू हूँ दीया हूँ, ना कोई तारा हूँ
मैं ना जुगनू हूँ दीया हूँ, ना कोई तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
मैं ना जुगनू हूँ दीया हूँ, ना कोई तारा हूँ
मैं ना जुगनू हूँ दीया हूँ, ना कोई तारा हूँ
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
नींद से मेरा तअल्लुक़ ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं?
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं?
Writer(s): Jagjit Singh, Rahat Indori Lyrics powered by www.musixmatch.com