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Aye Gham-E-Dil Kya Kroon Songtext
von Jagjit Singh

Aye Gham-E-Dil Kya Kroon Songtext

शहर की रात और मैं नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ
जगमगाती, जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
ग़ैर की बस्ती है, कब तल दर-ब-दर मारा फिरूँ

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?
(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)

ये रूपहली छाँव, ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़ी का तस्सवुर, जैसे आशिक़ का ख़याल
आह लेकिन कौन समझे, कौन जाने जी का हाल


(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)
(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)

जी में आता है, ये मुर्दा चाँद-तारे नोच लूँ
इस किनारे नोच लूँ, और उस किनारे नोच लूँ
एक-दो का ज़िक्र क्या, सारे के सारे नोच लूँ

(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)
(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)

रास्ते में रुक के, दम ले लूँ मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ, मेरी फ़ितरत नहीं
और कोई हमनवा मिल जाए, ये क़िस्मत नहीं


(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)
(ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ? ऐ बेहशत-ए-दिल क्या करूँ?)

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