Ab Ke Barsat Ki Rut Songtext
von Chitra Singh
Ab Ke Barsat Ki Rut Songtext
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
लोग भी काँच के हैं, राह भी पथरीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने
पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने
अब ये कहता है के रंगत ही मेरी पीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
मुझको बे-रंग ही करदे न कहीं रंग इतने
मुझको बे-रंग ही करदे न कहीं रंग इतने
सब्ज़ मौसम है, हवा सुर्ख़, फ़िज़ा नीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
सोचता हूँ के अब अंजाम-ए-सफ़र क्या होगा
लोग भी काँच के हैं, राह भी पथरीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने
पहले रग-रग से मेरी ख़ून निचोड़ा उसने
अब ये कहता है के रंगत ही मेरी पीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
मुझको बे-रंग ही करदे न कहीं रंग इतने
मुझको बे-रंग ही करदे न कहीं रंग इतने
सब्ज़ मौसम है, हवा सुर्ख़, फ़िज़ा नीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
जिस्म से आग निकलती है, क़बा गीली है
अब के बरसात की रुत और भी भड़कीली है
Writer(s): Jagjit Singh, Muzaffar Warsi Lyrics powered by www.musixmatch.com